निठल्ले की डायरी – हरिशंकर परसाई | निठल्ले – निठल्ले में फ़र्क है!
जब तक पुरुष नारी को यह ना बता दे कि मैं जंगली जानवर भी हूँ, तब तक वह समझता है कि मेरी पूरी शख्सियत नहीं उभरी।
जब तक पुरुष नारी को यह ना बता दे कि मैं जंगली जानवर भी हूँ, तब तक वह समझता है कि मेरी पूरी शख्सियत नहीं उभरी।
इस फ़िल्म में मेरी तीन सबसे प्रिय अभिनेत्रियाँ हैं जिन्होंने बहुत अहम किरदार निभाए हैं- Kalki Keochlin, Sayani Gupta, Revathi. कहानी Laila(Kalki) की ज़िंदगी की है जो कि Cerebral Palsy से ग्रसित है। उसके परिवार में उसके पिता, उसकी माँ(Revathi) और उसका भाई भी है। Laila दिल्ली में college पढ़ती है, उसे music बहुत पसंद है और वो अपने college के music band में lyricist का काम भी करती है।
पढ़ने के बाद ऐसा लगा कि मुझसे कुछ छीन लिया गया है। कुछ बेहद निजी। इतने दिनों से कोई था जो साथ था और वो एक दम से किसी ने छीन लिया है या बिना बताए चला गया है। इतना खाली, इतना दुख हुआ कि बहुत देर हाथों को देखता रहा। इतनी निजी बातें पढ़ने का guilt, फिर अंत में कुछ भी हाथ ना आने का अहसास, और उसके बाद इतना कुछ मिल गया का सुख – और इन सबके बाद भी – इतना human कुछ पढ़ने की झुरझुरी अभी भी शरीर पर महसूस हो रही है। कितना कुछ लिखा जा सकता है इस बारे में पर हमारे शब्द कितने झूठे है। हमारा कुछ लिखना, एक भी शब्द कितना थोथला है और ये लिखते लिखते – ये कितना निरर्थक है। कितना झूठ है मेरा खुद को देखना इसके comparison में।
From a certain point on, there is no more turning back. That is the point that must be reached. Franz Kafka (Aphorisms) मुझे बहुत पसंद है जब मैं सुबह उठुं और कुछ भी करने से पहले मेरे मन में हो कि यार वो किताब complete करनी है। जो किताबें बांध कर रख पाएं – उनका…
“The social Dilemma” 2020 में बनी एक वृतचित्र है यानी कि एक डॉक्यूमेंट्री फ़िल्म है। इसे जेफ ओरलोवस्की ने डायरेक्ट करा है और यह नेटफ्लिक्स पर उपलब्ध है। जैसा कि फ़िल्म के नाम से ही पता चलता है यह फ़िल्म सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स और उनसे जुड़े हमारे Dilemma पर बात करती है।
तो भाईसाब, ये जो पिक्चर है I’m Thinking of Ending Things – ये दिमाग खोल देगी। इमेजिनेशन, कहानी, डायरेक्शन, एक्टिंग, सिनेमेटोग्राफी, meaning, relatibility, बातें, absurdity, life, loneliness, continuos shots, human, creativity और ना जाने किन किन मामलों में।
“But man is not made for defeat. A man can be destroyed but not defeated.”
फ़िल्म को देख मन में कितनी ही बार यह सवाल आता है कि क्या सच में हमारे खालीपन और निराशा से भागा जा सकता है? और अगर हम भाग भी लेते हैं तो जहाँ ठहरेंगे वहाँ खालीपन और निराशा नहीं होगी यह बात कितनी निश्चितता से कही जा सकती है। यह सब सोचते हुए मानव कौल की लिखी एक बात भीतर कहीं गूँजने लगती है “किसी के चुनते ही जो नहीं चुना वह दिमाग में रह जाता है और जो चुन लिया वह हमारे थके हुए जीवन का हिस्सा बन जाता है।”
We construct quite useless war machines, towers, walls, curtains of silk, and we might wonder a lot about that if we had the time. And remain suspended in the air, we don’t fall, we flutter, even though we’re uglier than bats. And now hardly anyone can prevent us from saying on a beautiful day: ‘Oh Lord, it’s a beautiful day today.’ For already we are settled in on this earth, and we live on the basis of our consent.
They say he looks completely different when he comes into the village and different when he leaves it, different before he has had a beer, different afterward, different awake, different asleep, different alone, different in a conversation, and, quite understandably after all this, almost utterly different up there at the Castle.